दाग़ देहलवी के समकालीन अमीर मीनाई अपनी ग़ज़ल 'सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता' के लिए प्रसिद्ध हैं। 1976 में उस समय के नवोदित ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नें इस ग़ज़ल को गाकर बहुत नाम कमाया था।
यहाँ तक कि उनकी आवाज़ में यह ग़ज़ल लता मंगेशकर और आशा भोसले, दोनों की सबसे पसन्दीदा ग़ज़ल रही है। इस गज़ल को इतनी मकबूलियत मिली कि आज भी यह ग़ज़लों की महफ़िलों की शान है। इस 'आहिस्ता-आहिस्ता' का कई फ़िल्मी शायरों और गीतकारों ने समय-समय पर फ़ायदा उठाया है।
संगीतकार अनु मलिक की पहली कामयाब फ़िल्म 'पूनम' में मोहम्मद रफ़ी और चन्द्राणी मुखर्जी से एक ग़ज़ल गवाया था जिसे उनके मामा हसरत जयपुरी साहब ने लिखा था। अमीर मीनाई की इस ग़ज़ल से "आहिस्ता-आहिस्ता" को लेकर हसरत साहब ने लिखा-
"मोहब्बत रंग लायेगी जनाब आहिस्ता आहिस्ता,
के जैसे रंग लाती है शराब आहिस्ता आहिस्ता"
इस तरह से अमीर मीनाई की मूल ग़ज़ल "सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता" के कई संस्करण और उससे प्रेरित कई गीत रचे गए, कई ग़ज़लें बनीं, पर सभी गीतों और ग़ज़लों को सुन-पढ़ कर इस नतीजे पर पहुँचा जा सकता है कि उनकी उस मूल रचना का स्तर ही कुछ और है, उसकी बात ही कुछ और है।
19वीं सदी में लिखे जाने के बावजूद उसका जादू आज भी बरकरार है, और आज भी जब ग़ज़लों की किसी महफ़िल में इसे गाया जाता है तो लोग "वाह-वाह" कर उठते हैं-
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफताब आहिस्ता आहिस्ता
जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
सवाल-ए-वस्ल पर उन को अदू का ख़ौफ़ है इतना
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता
वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता
लखनऊ में जन्मे मुंशी अमीर अहमद मीनाई (1828-1900) का नाम उर्दू अदब के मकबूल और बेहतरीन शायरों में शुमार किया जाता है। मौलवी शेख़ करम मोहम्मद के बेटे अमीर मीनाई चौदह साल की उम्र में ही मुशायरों में शामिल होने लगे थे। 1857 के ग़दर के बाद ये रामपुर चले आए और 43 वर्षों तक वहां रहे। अमीर मीनाई की ग़ज़लों में इतनी जबर्दस्त गेयात्मक्ता है जो आज भी गीतकार उनके शेरों को आधार बनाकर अपने गीतों के मुख़ड़े लिखते हैं -
आरज़ू वस्ल की अच्छी यह खयाल अच्छा है
हाय पूरा नहीं होता है, सवाल अच्छा है
नज़ाअ में मैं हूं वह कहते हैं कि ख़ैरियत है
फ़िर बुरा होता है कैसा जो यह हाल अच्छा है
मांगू मैं तुझी को कि कभी मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
अमीर मीनाई की शायरी का न सिर्फ कैनवास बहुत बड़ा है बल्कि उनके कहने का ढंग भी अपने समकालीनों से बिलकुल जुदा और असरदार है। उनकी शायरी की गहराई का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उर्दू शायरी के बादशाह कहे जाने वाले जनाब मिर्जा गालिब भी उनसे प्रभावित रहे हैं। अमीर मीनाई के कहने के अंदाज़ में सिर्फ तल्खी ही नहीं है बल्कि शायरी की खूबसूरत नजाकत भी है। उनका कलाम हमेशा जिंदा रहने वाला है और हर दौर में वो ताज़ा ही लगेगा-
उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूं
ढूंढने उसको चला हूं जिसे पा भी न सकूं
मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं
अमीर मीनाई की शायरी यौवन के सौंदर्य और उसके लालित्य के साथ सामाजिक संवेदना की भी शायरी है। वह पूरे संसार को अपने विचारों और भावनाओं में रंगा हुआ देखते हैं। प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करते हुए उन्हें अनुभव होता है कि प्रकृति के दृश्य उनकी आंतरिक भावनाओं से प्रभावित हैं। यदि वह उदास हैं तो ओस में नहाई हुई कलियां उन्हें उदास नज़र आती हैं और यदि वह प्रसन्न हैं तो मुर्झाये हुए फूल भी उन्हें मुस्कराते नज़र आते हैं-
आरज़ू वस्ल की अच्छी यह खयाल अच्छा है
हाय पूरा नहीं होता है, सवाल अच्छा है
नज़ाअ में मैं हूं वह कहते हैं कि ख़ैरियत है
फ़िर बुरा होता है कैसा जो यह हाल अच्छा है
अमीर मीनाई की शायरी की सबसे बड़ी खासियत है उसकी भाषा। अवधी-उर्दू ज़बान का अद्भुत संगम उनकी शायरी में झलकता है। सरल शब्दों के प्रयोग से वो अपने अशआर में आम इंसान की परेशानियों और खुशियों को बहुत खूबी से दर्शाते हैं। उनकी शायरी आमजन की शायरी है। पढ़ते वक्त लगता है जैसे वो हमारी ही बात कर रहे हों, यही कारण है कि पढ़ते वक्त उनके अशआर अनायास ही ज़बान पर चढ़ जाते हैं और हम उन्हें गुनगुनाने लगते हैं। यही एक शायर की कामयाबी भी है।
अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है
तुझसे मांगूं मैं तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को
हिज्र अच्छा न हसीनों का विसाल अच्छा है
आ गया उसका तसव्वुर तो पुकारा ये शौक़
दिल में जम जाए इलाही ये ख़याल अच्छा है
आगे पढ़ें
5 महीने पहले
कमेंट
कमेंट X