'फ़ोर्स 2' का रिव्यू: देसी रैंबो हैं जॉन अब्राहम!
- सुशांत मोहन
- बीबीसी संवाददाता
फ़िल्म: फ़ोर्स 2
कलाकार: जॉन अब्राहम, सोनाक्षी सिन्हा
निर्देशक: अभिनय देव
रेटिंग: ***
साल 2011 में फ़िल्म 'डेल्ही बेली' के लिए निर्देशक अभिनय देव को सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था.
उसी साल जॉन अब्राहम की एक्शन फ़िल्म 'फ़ोर्स' रिलीज़ हुई थी .
पांच साल पहले 'फ़ोर्स' में एक्शन विलेन विद्युत जामवाल के अभिनय और जॉन की बॉडी की काफ़ी तारीफ़ हुई थी. फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कमाल नहीं कर सकी थी. क्या इस बार भी ऐसा होगा?
पुरानी 'फ़ोर्स' से इस साल की 'फ़ोर्स' कई तरह से अलग है. निर्देशक बदल गए हैं, जॉन की हीरोइन बदल गई है, विलेन बदल गए, स्टंट का कैनवास और बड़ा है, लोकेशन भारत से बदल कर यूरोप हो गई है. लेकिन एक चीज नहीं बदली, और वो हैं जॉन.
जॉन अभी भी पांच साल पहले जैसा ही भावशून्य अभिनय करते हैं और मैं यह बात उनका फ़ैन होने के बावजूद कह रहा हूं.
टेढ़ी मुस्कान और गुस्से वाले चेहरे के अलावा और कोई भाव उनके चेहरे पर नहीं आता.
लेकिन उन्हें इतने कलात्मक अभिनय की ज़रूरत भी नहीं है क्योंकि जब वो एक्शन करते हैं, आपको हॉलीवुड के रैंबो का किरदार याद आ जाता है.
'फ़ोर्स 2' में अपने पांच साल पुराने किरदार इंस्पेक्टर यशवर्धन के किरदार को दोबारा निभा रहे जॉन पहले से ज़्यादा खतरनाक़ और बलिष्ठ हो गए हैं.
वो अपने एक ही वार से 10-12 गुंडों को सहम जाने को मजबूर कर देते हैं, फिर कार उठा लेते हैं. वो बुद्धिमान भी हैं, एक रॉ एजेंट से भी ज़्यादा बुद्धिमान.
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इस फ़िल्म में सोनाक्षी सिन्हा एक रॉ एजेंट बनी हैं. उन्होंने पिछली फ़िल्म 'अकीरा' में एक्शन भी किया था. इस वजह से उनका इस फ़िल्म में एक्शन न करना अखरता है.
खैर फ़िल्म की कहानी ये है कि भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ के गुप्त एजेंटों की जानकारी कोई चीनी खुफ़िया एजेंसियों को दे रहा है और चीनी खुफ़िया एजेंसी इन रॉ एजेंटों को मार रही है.
मुंबई पुलिस के अधिकारी जॉन अब्राहम को इस केस में तब आना पड़ता है जब उनका एक रॉ एजेंट दोस्त मारा जाता है.
रॉ अधिकारी जॉन को एजेंट केके (सोनाक्षी) के साथ विदेश भेजते हैं. वहां हैरतअंगेज़ एक्शन, जबरदस्त सस्पेंस और ड्रामा से निकलते हुए दोनों अधिकारी रॉ एजेंटों की हत्या की तह तक पहुंचते हैं.
फ़िल्म में विलेन का किरदार ताहिर राज भसीन ने निभाया है. ताहिर इससे पहले मर्दानी, हॉलीडे जैसी फ़िल्मों में एक सनकी, ठंडे दिमाग वाले विलेन का किरदार निभा चुके हैं.
ताहिर इस फ़िल्म में भी वही कर रहे हैं. वो एक कूल विलेन हैं. ऐसा विलेन जो बड़ी तसल्ली से और आराम से रॉ एजेंटों को मार रहा है.
'फ़ोर्स 2' में आपको जगह-जगह जॉन देशभक्ति और देश में बदलते माहौल का हवाला भी देते नज़र आएंगे.
फ़िल्म के अंत में उन्होंने सैनिकों और शहीदों के लिए एक मैसेज भी जारी किया है. इससे पता चलता है कि इस फ़िल्म की एक थीम देशभक्ति भी है.
पहले ही सीन से एक्शन से लबरेज़ इस फ़िल्म में आपको मनोरंजन का तड़का मिलेगा. अगर आप सिनेमा की कलात्मकता एक तरफ़ रखकर, सिर्फ़ मनोरंजन के लिए थिएटर में जा रहे हैं तो यह फ़िल्म आपको बांधेगी.
जॉन 'देसी हल्क' हैं और कुछ एक दृश्य में बिल्कुल हॉलीवुड हीरो जैसा एक्शन करते नज़र आते हैं. ये प्रभावित करता है.
फ़िल्म में निर्देशन अच्छा है और क्लाईमेक्स में वीडियो गेम की तर्ज पर फ़िल्माए गए एक्शन दृश्य एक नया प्रयोग हैं.
ख़राब या अच्छे पर बहस की जा सकती है लेकिन निर्देशक की इस नई कोशिश की सराहना की जानी चाहिए.
फ़िल्म में कुछ कमियां है. जैसे ताहिर का इतनी आसानी से चीनी खुफ़िया एजेंसी से संपर्क करना. उसका रॉ में दाखिल हो जाना. उसके पास बड़ी फ़ौज का होना. लेकिन फिर सिनेमैटिक फ़्रीडम भी एक चीज़ होती है.
फ़िल्म की सबसे बड़ी कमी है जॉन और सोनाक्षी का अभिनय. वो एक जैसा ही अभिनय करते हैं. हर फ़िल्म, हर दृश्य और लगभग हर फ़्रेम में.
लेकिन जॉन जब एक्शन करते हैं तो एक्सप्रेशन की ग़लती माफ़.
तीन स्टार, पहला जबरदस्त एक्शन और थोड़े सस्पेंस के लिए, दूसरा स्टार जॉन के मसल पॉवर के लिए और तीसरा ताहिर राज के 'कूल' विलेन के किरदार और उनके वन लाइनर्स के लिए.
अगर आप एक्शन फ़िल्मों के फ़ैन हैं तो फ़िल्म आपको पसंद आएगी, एक्शन फ़िल्में नहीं देखते हैं तो कैश बचाइए, वैसे ही दिक्कत चल रही है.