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संस्कृति और कवि

                
                                                         
                            संस्कृति और समय बीच हमेशा से रहा है द्वंंद
                                                                 
                            
दृष्टि और दिशाओं में भी परिलक्षित रहता द्वंद्व।

प्राथमिकता विषम पूरब-पश्चिम ज्ञान-विज्ञान
पश्चिम दृष्टि प्रथम ज्ञान,पूरब कर्म-विज्ञान प्रधान।

भारत है पूरब में, ऋषि तुल्य यहां कवि-कलाकार
मौलिक-दृष्टि, नव-सृजन से, करता मानस उपचार।

सामाजिक उत्थान में साहित्य विशेष स्थान
देश-संस्कृति-गरिमा, फकीर रख़े सदा ध्यान।

नदी, सूरज और वृक्ष करते जन-जीवन उपकार
निसदिन निज रचना से, मन झकझोरे कविराज।

- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। 

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6 वर्ष पहले

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