3.7 लाख लीटर पानी लेकर 200 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए भारत की पहली वाटर ट्रेन 2 मई 1986 की सुबह राजकोट पहुंची थी। 1985 वो साल था, जब सौराष्‍ट्र में सूखा पड़ा था। हालांकि, थोड़ी बहुत बारिश हुई थी, लेकिन वह इतनी नहीं थी कि पांच लाख लोगों की प्‍यास बुझा सके। उस वक्‍त सौराष्‍ट्र की आबादी इतनी ही थी। फरवरी 1986 तक आते-आते आजी, न्‍यारी और लालपरी बांध सूख चुके थे।

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बीजेपी नेता और राजकोट नगर निगम में तत्‍कालीन कॉर्पोरेटर जनक कोटक ने बताया कि उस वक्‍त हमारे पास बाहर से पानी मंगाने के अलावा दूसरा विकल्‍प नहीं बचा था। सुंदरनगर और मिताणा में कुछ ट्यूबवेल्‍स थे। वहां से 1000 टैंकर भरे जा रहे थे। हलवाण तालुका के लोगों ने मदद की पेशकश की थी, लेकिन वह 100 किलोमीटर दूर था। राजकोट के मेयर वजुभाई वाला ने राज्‍य सरकार से कुछ अलग कदम उठाने को कहा।

गुजरात के रिटायर्ड चीफ सेक्रेटरी और वाटर सप्‍लाई डिपार्टमेंट में तत्‍कालीन जॉइंट सेक्रेटरी परवीन लहरी ने बताया कि अमर सिंह चौधरी की गुजरात सरकार ने राजकोट तक वाटर ट्रेन भेजने का फैसला किया। इसके तहत गांधी नगर के ट्यूबवेल्‍स से पानी एकत्रित किया गया और फिर उसे 220 किलोमीटर दूर राजकोट रेल से भिजवाया गया। इसी प्रकार से धातरवाड़ी बांध पर पम्‍प लगवाया गया और वहां से पानी भरकर 200 किलोमीटर दूर अमरेली तक पहुंचाया गया। रेल नगर इलाके में एक अस्‍थायी हौदी बनाई गई, जहां से वाहनों में पानी भरकर ले जाया गया। कई हफ्तों की तैयारी के बाद आखिरकार 2 मई 1986 को वो दिन आ गया। उस वक्‍त युद्ध जैसे हालात थे। प्रतिदिन छह ट्रेन पानी लेकर शहर में आती थीं और फिर टैंकरों के जिरए पानी को आजी और न्‍यारी ले जाता था। यह क्रम लगातार चलता रहता और फिर इन हौदियों से पानी स्‍थानीय निवासियों तक पहुंचाया जाता। राजकोट के तत्‍कालीन म्‍युनिसिपल कमिश्‍नर एस जगदीशन ने टैंकर्स के ऑपरेशन की गिनरानी के लिए चार सदस्‍यीय टीम का गठन किया था।

प्रतिदिन छह ट्रेनों में 30 लाख लीटर पानी भरकर लाया जाता था। प्रत्‍येक मकान मालिक के लिए 90 लीटर पानी का कोटा फिक्‍स किया गया था। टैंकर्स चौक-चौराहों पर खड़े हो जाते और स्‍थानीय निवासी लाइन लगाकर पानी भरते।

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